लोगों की राय

लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं

औरत का कोई देश नहीं

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7014
आईएसबीएन :9788181439857

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

150 पाठक हैं

औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...

भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ पुरुष


वयस्क लोगों में स्त्री और पुरुष का औसत अनुपात आमतौर पर कुछ यूँ होता है-स्त्री ज़्यादा, पुरुष कम। एक हज़ार पुरुष और एक हजार पाँच स्त्रियाँ। स्वस्थ समाज में यही दर होता है। लेकिन अस्वस्थ समाज में इसमें हेर-फेर हो जाता है। भारत के चन्द सम्प्रदायों में अस्वस्थता पहले से ही मौजूद थी, अब इसने महामारी का आकार धारण कर लिया है। अब इस पर विश्वास करें या न करें, लेकिन यही सच है।

सन् 1992 में, जब जयललिता मुख्यमन्त्री थीं, तमिलनाडु सरकार ने एक 'झूला-व्यवस्था' शुरू की थी। लोग अनचाहे लड़की-शिशु को उस झूले में रख जायें। उस साल उस झूले में सत्तर लड़की शिशु जमा भी हुई, लेकिन उन्हें दत्तक देने से पहले, कुल बीस बच्चियाँ बच रहीं। इस व्यवस्था के प्रति किसी की आस्था नहीं रही। सन् 1993 में देखा गया कि अप्रैल से दिसम्बर महीने तक, तमिलनाडु के उस अंचल में, ग्यारह सौ चौरानवे लड़की-शिशुओं ने जन्म लिया, जिसमें से एक सौ छप्पन बच्चियों की हत्या कर दी गयी, 243 बच्चियों की हत्या रोकी गयी और 'झूले' में कुल सात बच्चियाँ ही जमा हुईं। अन्त में 'झूला' योजना बन्द हो गयी।

भारत के उत्तरांचल की तुलना में दक्षिणांचल में हमेशा ही लड़कियों का सम्मान अपेक्षाकृत अधिक था। यहाँ तक कि किसी ज़माने में केरल में मातृ-कुल आधारित समाज मौजूद था। माँ की सम्पत्ति बेटी को मिलती थी। विवाह के बाद लड़कियाँ घर-गृहस्थी बसाने के लिए ससुराल नहीं जाती थीं। अपने ही घर में रोब से रहती थीं। पति ही आता था और उनके यहाँ कुछ दिन गुज़ार जाता था। जब मातृ-कुल आधारित समाज टूट गया, तब भी केरल में लड़कियों का मान-सम्मान, भारत के अन्य किसी भी राज्य से अधिक था। लड़कों के अनुपात में लड़कियाँ अधिक थीं, वहाँ की लड़कियाँ शिक्षित भी अधिक थीं। और आत्मनिर्भर भी अधिक थीं। लड़कियों के इस स्वर्गोपम राज्य में भी आजकल बालिका-हत्या जारी है। तमिलनाइ, आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक भी आजकल बदलता जा रहा है खासकर तमिलनाडु। इन राज्यों के कई-कई गाँवों में सुनियोजित ढंग से लड़कियों की हत्या की जा रही है। अगर सम्भव हुआ तो जन्म से पहले, सम्भव न हुआ तो जन्म के बाद।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. इतनी-सी बात मेरी !
  2. पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
  3. बंगाली पुरुष
  4. नारी शरीर
  5. सुन्दरी
  6. मैं कान लगाये रहती हूँ
  7. मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
  8. बंगाली नारी : कल और आज
  9. मेरे प्रेमी
  10. अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
  11. असभ्यता
  12. मंगल कामना
  13. लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
  14. महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
  15. असम्भव तेज और दृढ़ता
  16. औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
  17. एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
  18. दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
  19. आख़िरकार हार जाना पड़ा
  20. औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
  21. सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
  22. लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
  23. तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
  24. औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
  25. औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
  26. पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
  27. समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
  28. मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
  29. सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
  30. ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
  31. रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
  32. औरत = शरीर
  33. भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
  34. कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
  35. जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
  36. औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
  37. औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
  38. दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
  39. वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
  40. काश, इसके पीछे राजनीति न होती
  41. आत्मघाती नारी
  42. पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
  43. इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
  44. नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
  45. लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
  46. शांखा-सिन्दूर कथा
  47. धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai